तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है
गुमशुदा है दिल की तमन्ना
या तमन्ना अपनी छुपा रही है
सहमी सी देख रही है तुमको
या तुम्हारी नजरो से खुद को छुपा रही है
शर्मा रही है या घबरा रही है
तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है
तुम्हारी शीतल छुअन
एहसासों को जगा रही है
आंखे बंद करके प्यारे लम्हे को सजा रही है
आगोश मे आने को हर लम्हा
तिल-तिल कर बिता रही है
तुम्हारे स्पर्श की बाबरी
अपना प्यार बढा रही है
तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है
बेसुध सी हुए पड़ी है
आंखे तो सोना चाहे
पर नींदे कहाँ आती है
यादो के यादो मे
अपने दिल और रात बिता रही है
तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है
आँखों से आँखों के मिलन मे
आँखों की कशिश शर्मा रही है
उनके यादो मे डूबी बाबरी
खुद को कितना सजा रही है
तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है