Saturday, September 19, 2009

मेरे दिल की यही कवायद है

मेरे दिल की यही कवायद है
जो मेरा नहीं है क्यों उसकी चाहत है
भ्रम की दुनिया मे जीती हू
या भ्रम बुन रखा है अपने इर्द-गिर्द
जानती नहीं मै ये फिर भी क्यों उसकी हसरत है
कराह रहा है दिल मेरा या दिल की यही आदत है
भाग रही हू मै तुमसे या नियति की यही चाहत है
खामोश हू मै लेकिन गुफ्तगू है दिल मे कई
बोलू कैसे उसको मै टुकरो मे मिलती है मुझे ज़िन्दगी
रोज़ होती है खुद से कुछ खास बाते
ढूंडटी रहती हू हर रोज़ उनकी फ़रियादे
फरिस्तो की दुनिया मे रहते है वो
और हम तो ज़मीं के भी न लायक है
खौफ होती है मुझे अपनी ज़िन्दगी से
फिर कैसे उन्हें इस खौफ का हिस्सा बनाये
वो नहीं है हमारे फिर क्यों उनकी चाहत है
खुशियो की आदत नहीं है हमें
फिर क्यों आप हमें खुशियों मे नहलाते है
कुर्बत की चाहत नहीं है हमें
फिर क्यों हर रोज़ एक सपना दिखाते है
किश्तों-किश्ती मे मर रहे है हम
ज़िन्दगी भी नहीं है मेरे संग
फिर क्यों जीने की हसरत जगाते हो
तुम नहीं हो मेरे फिर क्यों तुम्हारी चाहत है
क्यों ज़माने मे ऐसा होता है
जो दिल के पास हो दिल से दूर वही होता है
खुशनसीब है वो जो तन्हाई के संग जीते है
हमारी बेबसी तो देखो हम तो भीर मे भी तनहा होते है
तसल्ली तो उनको भी होती है जो देते है
तसल्ली तो उनको भी होती है जो खोते है
और हम बेबस तो पाकर भी खोते है
रेतो का घरोंदा है मेरा
क्यों इसमें बसेरा ढूंडते हो
हम तो पानी मे बह जाएंगे
फिर से साए सा खो जाएंगे
क्यों दिल पर दस्तक दाते हो
तुम नहीं हो मेरे फिर क्यों तुम्हारी चाहत है
मेरे दिल की यही कवायद है

2 comments:

  1. वाह कीर्ति जी , बहुत बढ़िया.
    typing mistakes का ध्यान रखें.
    शुभकामनाऐं.
    विजयप्रकाश

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