Thursday, November 22, 2012

माँ

                                                                         
मेरे हर पल को तुमने महकाया
थाम के मेरी ऊँगली मुझे चलना सिखाया 
आँखों में नींद भरके मेरे रातों को सुलाया 
और सपनो में मैंने परियो में तुम्हे पाया 
माँ ............
सीढियो पर एक-एक  कदम मेरे साथ बढ़ाया 
और गमलो के फूलों पर भी मिल कर पानी बरसाया
आँगन के कोने-कोने मे रंगोली बनाना सिखाया 
और आटे की लोई से भी जाने क्या-क्या बनाया 
माँ............
आँगन के धूप मे बैठ कर बालों मे तेल लगाया
सुबह-सुबह जगा कर ठन्डे पानी से भी नहलाया
स्कूल पंहुचा कर आँखों के आंसू को आँचल में छुपाया
और शाम होते ही बागीचे मे जाने क्या-क्या खेल खिलाया
 माँ............
दोस्तों के हर झगड़े को तुमने ही सुलझाया
चोट पर मेरी हर तुमने ही मलहम लगाया
नींद में जाने कितने निवाले मुझे खिलाया
और अपनी थपकी से मुझे हर रात सुलाया
माँ ............
सावन में तुमने ही झुला लगाया
और बारिश में मेरे संग यादों को नहलाया
कभी-कभी गुस्से में आकर थप्पड़ भी लगाया
और बाद में खुद की आँखों से सावन को बरसाया
माँ ............
तेरी तुलना किस्से करूँ मैं
तेरा प्यार कभी न झूठा पाया
उसकी भी शिद्दत तेरे बाद करूँ मै
जिसने ये संसार रचाया
माँ ............
रचनाकार: कीर्ति राज

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