Tuesday, September 1, 2009

चिराग


चिराग-ऐ-रोशिनी के लौ की कसम
गरज न होती तेरी तो बुझा देते तुझे हम
दोस्ती का वास्ता तू देता रहा हरदम
और हम नाअक्ल समझे तू खुदा का है हमदम
तेरे खुवाबो की हकीक़त बाया करते रहे हम
और जनाज़ा निकलता रहा हमारे खुवाबो का सनम
काली रातो मे थमा तेरी रोशिनी का दामन
और उस रोशिनी की खातिर जला दिया तुने मेरा दामन
हम तो जल कर भी तेरा घर करते रहे आबाद
बस तुने ही हमारी मुरादों को कर दिया बर्बाद
मेरे अंधेरो मे बस रह गया वो चिराग
जो दिलाता है हमें तेरी हम्दर्दगी की याद
या जताता है हमारे बेबसी की औकाद
चिराग-ए-रोशिनी के लौ की कसम
गरज नो होती तेरी तो बुझा देते तुझे हम

2 comments:

  1. सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति. आभार आपका.

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  2. टंकण त्रुटि सुधार लेवें.

    चिराग-ऐ-रौशनी के लौ की कसम
    गरज न होती तेरी तो बुझा देते तुझे हम
    दोस्ती का वास्ता तू देता रहा हरदम
    और हम नाअक्ल समझे तू खुदा का है हमदम
    तेरे ख्‍वाबों की हकीक़त बयां करते रहे हम
    और जनाज़ा निकलता रहा हमारे ख्‍वाबों का सनम
    काली रातो मे थामा तेरी रौशनी का दामन
    और उस रौशनी की खातिर जला दिया तुने मेरा दामन
    हम तो जल कर भी तेरा घर करते रहे आबाद
    बस तूने ही हमारी मुरादों को कर दिया बर्बाद
    मेरे अंधेरो मे बस रह गया वो चिराग
    जो दिलाता है हमें तेरी हमदर्दी की याद
    या जताता है हमारे बेबसी की औकात
    चिराग-ए-रौशनी के लौ की कसम
    गरज नो होती तेरी तो बुझा देते तुझे हम

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