Tuesday, August 25, 2009

SUKHA BRIKSHA


जब नज़र पड़ी उस सूखे वृक्ष पर जब देखा उन मुरझाये शाखाओ को जो कल तक थी हरी भरी सी आज हो गए वो कैसे बिरह की लारी सी....................................... आस पास जो पौधे लगे थे छोड़ गए थे वो भी साथ तूफानी बारिश ने कर दिया था उनको भी बर्बाद............................... विरह की आग में झुलस-झुलस कर छोड़ रही थी अपनी साँस हर तपिश सा हर आंधी सा कह रही थी एक ही बात............................................... मरने से पहले आए मुजको प्रेम वर्ष का करा दो दीदार छोड़ रही हूँ ज़िन्दगी अपनी ला दो मेरे मन का करार करना है उनका दीदार ......................................................

:-- " kirti राज "

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