Wednesday, August 26, 2009

छल........


कहते एहसास है निस छल
ये तो है भक्ति का फल
पर तुम ये जानो फिर भी न मनो
ये तो है ओझल
क्यूंकि हर ओर है छल ....
सोने की धुल है ये
या हीरे की हलचल
रेशम की कोमलता है
या है मरू का स्थल
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल.......
पानी मे तुम जल कर देखो
या अग्नि से मिलता है जल
हर काया को यु न बदलो
ये तो है निर्मल
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल.......
बूंदों मे सागर है शयद
या सागर है बूंदों मे
ज्ञान की अखो से न देखो
धुआ धुआ ही पाओगे
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल......
तृप्ति की आशा न देखो
वो तो है तेरे ही संग
भटक रहे हो जो पाने की
मिल जाये तो भी है गम
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल.......
मिटटी की खुसबू है ये
या है ये दलदल
मरना चाहो मर भी जाओ
क्यों जीते हो हरपाल
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल........

2 comments:

  1. बहुत सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति. आभार आपका.

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