Tuesday, February 8, 2011

''ज़िन्दगी''






''ज़िन्दगी'' पिरोती है मोती
या हमारे भीतर है होती
कहते ज़िन्दगी संसार है
या रस्मो,उत्सव का परिवार है......

ये समंदर लगती है मुझे
डरती हूँ कहीं डुबो न दे
तो कभी इसमे लगाती हूँ गोते
ये हवाए मेरी उम्मीदे उड़ाते
जब ये धूप मेरी हिम्मत पछाड़े
तब ''ज़िन्दगी'' को कर देती हूँ आगे ......

लोग ढूंढ़ते है इसे इर्द-गिर्द
क्यों नहीं अपने भीतर समाते
क्यों नहीं ये समझ पाते
ये ''ज़िन्दगी'' नहीं हम है
जो खुद को हसाते और खुद को रुलाते.....

अपना रुतबा लोग बड़ा  दिखाते
पर हम इंसान बनने का जतन लगाते
''ज़िन्दगी'' एक अध्याय है
कभी  हम सीखते और सिखाते........