Thursday, November 29, 2012

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ye kya khushboo h mere andar... 
ye kya arzu h mere andar....
kuch dhund rhi hun mai idhar udhar...
kabhi sunsan basti mein......
kabhi bhir ki masti mein...
ek talab si h mere andar...
kab bujhegi ye pyasi samandar...
tut-tut ka bikhar rhi hun....
mai idhar udhar....
ye kya khusboo h mere andar...
ye kya arzoo h mere andar....
by: kirti raj......


Thursday, November 22, 2012

माँ

                                                                         
मेरे हर पल को तुमने महकाया
थाम के मेरी ऊँगली मुझे चलना सिखाया 
आँखों में नींद भरके मेरे रातों को सुलाया 
और सपनो में मैंने परियो में तुम्हे पाया 
माँ ............
सीढियो पर एक-एक  कदम मेरे साथ बढ़ाया 
और गमलो के फूलों पर भी मिल कर पानी बरसाया
आँगन के कोने-कोने मे रंगोली बनाना सिखाया 
और आटे की लोई से भी जाने क्या-क्या बनाया 
माँ............
आँगन के धूप मे बैठ कर बालों मे तेल लगाया
सुबह-सुबह जगा कर ठन्डे पानी से भी नहलाया
स्कूल पंहुचा कर आँखों के आंसू को आँचल में छुपाया
और शाम होते ही बागीचे मे जाने क्या-क्या खेल खिलाया
 माँ............
दोस्तों के हर झगड़े को तुमने ही सुलझाया
चोट पर मेरी हर तुमने ही मलहम लगाया
नींद में जाने कितने निवाले मुझे खिलाया
और अपनी थपकी से मुझे हर रात सुलाया
माँ ............
सावन में तुमने ही झुला लगाया
और बारिश में मेरे संग यादों को नहलाया
कभी-कभी गुस्से में आकर थप्पड़ भी लगाया
और बाद में खुद की आँखों से सावन को बरसाया
माँ ............
तेरी तुलना किस्से करूँ मैं
तेरा प्यार कभी न झूठा पाया
उसकी भी शिद्दत तेरे बाद करूँ मै
जिसने ये संसार रचाया
माँ ............
रचनाकार: कीर्ति राज

Friday, April 27, 2012

वो आज है नही साथ

                                                           

कभी होती  थी  हमारी  मुलाकात 
पर  अब  वो  होते  नही  साथ .....

अभी  तक  है  ये  ज़माने  की  जंजीरे
न  जाने  कब  बदलेगी  ये  बात

एक  दिन  था  जब  एक  दुसरे  को  सोचते  थे
पर  अब  तो  मिलते  नही  ख़यालात

कहते  ह  अब  मिलती  नही  हमारे  प्यार  की  औकाद
बड़ी  सादगी से वोह  कह  गए  ये  बात

जो  कल  तक  करते  थे  हमें  हर  पल  आबाद
आज  वो  हमें  कर  गए  बर्बाद .....

Wednesday, March 14, 2012

गलतिय

                                                         
कुछ  भूल तो कुछ सजा है मेरे जिम्मे
तुम्हे दर्द पहुचाने का गुनाह है मेरे जिम्मे
 कुछ ऐसे ही  टूटे बिखरे शब्द
जिन्हें समझ बैठे तुम धोका
तुमसे विश्वासघात करने  का इलज़ाम है मेरे जिम्मे........
 
शायद माफ़ भी कर दो मेरी भूलो को तुम
लेकिन खुद को नीलम करने का फरमान है मेरे जिम्मे
तुमको दर्द पहुचाने का इलज़ाम है मेरे जिम्मे
दरिया दिल तो तुम या पाख फ़रिश्ते
तुम्हारी अच्छाई को दफ़नाने का इलज़ाम है मेरे जिम्मे

खुद को कैसे टटोलू मै
अपने शीशे को नंगा करने का इलज़ाम है मेरे जिम्मे
बेशब्द हूँ मै और बेगैरत भी 
तुम्हे शर्मिंदा करने का एहसास है मेरे जिम्मे

एक आखिरी गुज़ारिश है मेरी
एक बार फिर सा अपना दामन  पकड़ा दो
एक बार फिर से अपने प्यार के आगोश में ढक लो
चुरा लो फिर से इस दुनिया सा मुझ को
फिर से मेरे हो जाओ .......


ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी


ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी
फिर भी कुछ है कमी
कुछ बिखरे पन्ने जोरे है
कुछ छूटे राहें  मोरे है
फिर भी ज़िन्दगी है थमी
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

बातें मेरी ख़त बन रहीं है
सुनने को कोई भी नहीं
बारिश में बैठे एहसासे भीग रही है
सुध लेने की खबर नहीं
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

ब्यस्त हो तुम अपने आशियाने में
मेरी न कोई कमी
मुर के देख लो एक बार
शायद हमारी यादें
अब भी कहीं वहीँ पड़ी
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

आँखें नम होती थी पहले
अब तो वो भी नमी नहीं
मिलने आ जाते थे तुम
जब याद आती थी मेरी
अब तो वो भी वजह नहीं
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

न जाने  कहाँ खो दिया है तुमको
घुटती हूँ ऐसे भीतर
जैसे खो दिया  हो खुद को
खुद से दुबारा मिलने की एक आस थी मन में
तुम्हारे जाने  से वो ख्याल भी सो गई   
मैं फिर से तनहा सी हो गई
थम गई है ज़िन्दगी
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

रचनाकार : कीर्ति राज