Wednesday, March 14, 2012

गलतिय

                                                         
कुछ  भूल तो कुछ सजा है मेरे जिम्मे
तुम्हे दर्द पहुचाने का गुनाह है मेरे जिम्मे
 कुछ ऐसे ही  टूटे बिखरे शब्द
जिन्हें समझ बैठे तुम धोका
तुमसे विश्वासघात करने  का इलज़ाम है मेरे जिम्मे........
 
शायद माफ़ भी कर दो मेरी भूलो को तुम
लेकिन खुद को नीलम करने का फरमान है मेरे जिम्मे
तुमको दर्द पहुचाने का इलज़ाम है मेरे जिम्मे
दरिया दिल तो तुम या पाख फ़रिश्ते
तुम्हारी अच्छाई को दफ़नाने का इलज़ाम है मेरे जिम्मे

खुद को कैसे टटोलू मै
अपने शीशे को नंगा करने का इलज़ाम है मेरे जिम्मे
बेशब्द हूँ मै और बेगैरत भी 
तुम्हे शर्मिंदा करने का एहसास है मेरे जिम्मे

एक आखिरी गुज़ारिश है मेरी
एक बार फिर सा अपना दामन  पकड़ा दो
एक बार फिर से अपने प्यार के आगोश में ढक लो
चुरा लो फिर से इस दुनिया सा मुझ को
फिर से मेरे हो जाओ .......


ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी


ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी
फिर भी कुछ है कमी
कुछ बिखरे पन्ने जोरे है
कुछ छूटे राहें  मोरे है
फिर भी ज़िन्दगी है थमी
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

बातें मेरी ख़त बन रहीं है
सुनने को कोई भी नहीं
बारिश में बैठे एहसासे भीग रही है
सुध लेने की खबर नहीं
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

ब्यस्त हो तुम अपने आशियाने में
मेरी न कोई कमी
मुर के देख लो एक बार
शायद हमारी यादें
अब भी कहीं वहीँ पड़ी
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

आँखें नम होती थी पहले
अब तो वो भी नमी नहीं
मिलने आ जाते थे तुम
जब याद आती थी मेरी
अब तो वो भी वजह नहीं
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

न जाने  कहाँ खो दिया है तुमको
घुटती हूँ ऐसे भीतर
जैसे खो दिया  हो खुद को
खुद से दुबारा मिलने की एक आस थी मन में
तुम्हारे जाने  से वो ख्याल भी सो गई   
मैं फिर से तनहा सी हो गई
थम गई है ज़िन्दगी
ज़र्रा ज़र्रा ये ज़िन्दगी

रचनाकार : कीर्ति राज