क्या तुमने कभी
मेरे चेहरे की झुर्रियो को देखा है
क्या सफ़ेद बालो का गुच्छा
और ज़बान की लड़खड़ाहट देखि है
देखा तो था तुमने मेरे योवन का रूप
पर क्या उम्र की दहलीज़ देखि है
देखा तो था तुमने मुझ्रे
तब्ती धूप और तूफान मे तुम्हारा इंतज़ार करते
पर क्या उस बूढी आँखों की प्यास देखि है
देखा तो था तुमने मुझे
इतराते और शरमाते
पर क्या मेरे बातो की गंभीरता देखि है
देखा तो था तुमने मेरी अटखेली
और मेरा जूनून से भरा प्यार
पर क्या अब् तक उस प्यार की डोर देखि है
हूँ तो नहीं मै उस जैसी अब्
पर क्या उसका इंतज़ार मुझ जैसा है
होगी वो बहुत सुन्दर,चंचल और निर्मल
पर क्या उसका शीशा मुझ जैसा है
प्यारी तो वो है तुम्हारी अब् भी
पर क्या उसका प्यार मुझ जैसा है
उसने तो बस प्यार को चखा है
पर क्या उसका इंतज़ार मुझ जैसा है
बैठी हू मै अब् भी इस पार
फिर कैसे वो मुझ जैसा है
Sunday, July 25, 2010
Wednesday, July 21, 2010
अनुभव
मै आज कल सबको तनहा सी लगती हू
बुझी-बुझी एक शमा सी लगती हू
देखते तो सब है मेरी तन्हाई
फिर क्यों लगती है मुझको प्यारी ये रूसवाई
शाम से बैठी हूँ किसी के इंतज़ार मे
और वो वयस्त है अपने नए संसार मे
शिकवा नहीं है मुझे किसी से
बस नाराज़गी है अपने वयवहार से
जब भी देखती हूँ आसमान मे चाँद को
तो कहती हू चकोर से
तू भी तो नहीं है उसके पास
फिर क्यों बजाता है मेरे तन्हाई पर साज़
कहते है मेरे दोस्त रिश्तो का दामन चाक है
अब् विश्वास और भरोसे का उड़ता मजाक है
थोड़े हौसले झुकते से दिख रहे है मेरे
शायद वजह किसी का दिया हुआ विश्वासघात है
खुश हूँ मै फिर भी
क्युकी सिखा जो मैंने आज है
वो अनुभव न पैसो का मोहताज है
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