Monday, August 31, 2009

बाबर मन


झूमे जिया मेरा मन बाबर
कहे सताए न आये पिया
मन के भवर मे गोते लगाये
वो छलिया मेरा बैरी पिया
संग न हो मै कैसे करू बतिया
आखे जो मिचु अपनी पाउ उसे सखिया
भोले पिया तरसे मेरी रतिया
वो छलिया मेरा बैरी पिया
जुल्फों से खेले ये पुरबैया
मन मे चुभोये यादो की सुईया
मै बाबरी समझी आये मेरे पिया
वो छलिया मेरा बैरी पिया
सोला श्रींगार मेरा खाली पड़ा
आखों से काजल गए माथे से बिंदिया
दर्पण ने भाये मोहे कब आओगे पिया
वो छलिया मेरा बैरी पिया

Wednesday, August 26, 2009

छल........


कहते एहसास है निस छल
ये तो है भक्ति का फल
पर तुम ये जानो फिर भी न मनो
ये तो है ओझल
क्यूंकि हर ओर है छल ....
सोने की धुल है ये
या हीरे की हलचल
रेशम की कोमलता है
या है मरू का स्थल
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल.......
पानी मे तुम जल कर देखो
या अग्नि से मिलता है जल
हर काया को यु न बदलो
ये तो है निर्मल
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल.......
बूंदों मे सागर है शयद
या सागर है बूंदों मे
ज्ञान की अखो से न देखो
धुआ धुआ ही पाओगे
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल......
तृप्ति की आशा न देखो
वो तो है तेरे ही संग
भटक रहे हो जो पाने की
मिल जाये तो भी है गम
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल.......
मिटटी की खुसबू है ये
या है ये दलदल
मरना चाहो मर भी जाओ
क्यों जीते हो हरपाल
तुम ये जानो फिर भी न मनो
क्यूंकि हर ओर है छल........

मेरा बिखरा आशियाना


खामोश रस्ते पर
भीर से बिपरीत शामियाने मे
एक सुनसान,तनहा,अकेले आशियाने मे
दबी-दबी सी सासों से चुपके-चुपके पाओ से
सोच-समझ कर अपना हर एक कदम बढा रही थी
डरी-डरी सी सिसक रही थी काप रहे थे मेरे हाथ
क्या दरवाज़ा खोलू और मिल जाये कोई सौगात
जब पहुची आशियाने के भीतर बंद पड़े थे सारे शाख
धुल बरस रही थी फर्श पर जैसे खालीपन हो उसके साथ
सहम-सहम कर कदम बढ़ रहे थे मेरे
और दरवाज़े सारे बंद पड़े थे
टूटी-फूटी छत से कुछ किरने बिखर रही थी
सोच रही थी इन किरणों को कर दू मै कैसे आबाद
टूटी सी एक मेज़ पर कुछ पन्ने बिखरे पड़े थे
और उन पन्नो पर यादो की एक धुल चढी थी
भटक रही थी हर कोने मे
चारो तरफ यादे बिखरी थी
समेट रही थी उन यादो को
अपने नन्हे से दामन मे
आखों से आसू बह रहे थे
मेरे मन के प्रांगन मे
खामोश रास्ते पर
भीर से बिपरीत शामियाने मे
एक सुनसान तनहा अकेले आशियाने मे

Tuesday, August 25, 2009

क्यूंकि हम है स्त्री!!!!!!!!!!!!!!


जब आती है ज़मीन पर
हँसता नहीं कोई भी
फिर भी होती है माँ को ख़ुशी
क्यूंकि हम है स्त्री

भटकती है कभी-कभी
और राह दिखाती सभी
क्यों भीर मे अकेली खड़ी
क्यूंकि हम है स्त्री

सहती है क्या नहीं
दर्द की थपथपी
पर रंग देती है सभी
क्यूंकि हम है स्त्री

अस्तित्व की तलाश होती
पर मिलती न गली-गली
ढूँढती रहती पगली
क्यूंकि हम है स्त्री

धुंद मे खोई सी रहती
कभी आइना भी इंकार कर देती
आसुओ को छुप्पा जो लेती
क्यूंकि हम है स्त्री

इन्तेज़ार वो करती रहती
कभी धुप होती कभी छाव होती
पर उस पथ को देखती रहती
क्यूंकि हम है स्त्री

रिश्तो मे उलझ जाती
अपनी सारी इक्षाये दबाती
किसी को भी न बताती
क्यूंकि हम है स्त्री

अपनों के सपनो मे
तोर देती खुद के सपने
फिर सपनो मे भी न सपने पाती
क्यूंकि हम है स्त्री

खुद होती है अकेली
हर राह पर सहारा देती
पर पीछे होता न कोए भी
क्यूंकि हम है स्त्री

संग कोई साथी नही
फिर भी वो रोती नहीं
हस्ती है फिर भी
क्यूंकि हम है स्त्री

तनहा ही इस दुनिया मे
आती है तनहा होने
तनहा ही इस दुनिया से
खो जाती है तनहा होके
क्यूंकि हम है स्त्री!!!!!!!!!!!!!!!

SUKHA BRIKSHA


जब नज़र पड़ी उस सूखे वृक्ष पर जब देखा उन मुरझाये शाखाओ को जो कल तक थी हरी भरी सी आज हो गए वो कैसे बिरह की लारी सी....................................... आस पास जो पौधे लगे थे छोड़ गए थे वो भी साथ तूफानी बारिश ने कर दिया था उनको भी बर्बाद............................... विरह की आग में झुलस-झुलस कर छोड़ रही थी अपनी साँस हर तपिश सा हर आंधी सा कह रही थी एक ही बात............................................... मरने से पहले आए मुजको प्रेम वर्ष का करा दो दीदार छोड़ रही हूँ ज़िन्दगी अपनी ला दो मेरे मन का करार करना है उनका दीदार ......................................................

:-- " kirti राज "

रिश्ते.........................

रिश्ते याद आते है कभी भूल जाते है
हमको रुलाते है चुप भी करते है
और फ़िर से खो जाते है
रिश्ते ........................
दर्द छुपाते है घाव बनते है
फ़िर भी हसते है मलहम लगाते है
और फ़िर सा वीरान कर जाते है
रिश्ते................ .................
खूब सताते है दर्द दिलाते है
गलियों- कुचों में भी भटकते है
और फ़िर से तनहा कर जाते है
रिश्ते .............................
जब साथ हो तो समझ न आते है
दूरियों के बाद ही क़द्र करते है
ज़हन में रहकर ज़हन को तरपते
है
रिश्ते.....................
कभी प्यारे लम्हे बनके होठो को हंसाते है
तो कभी पलकों को भिन्गोते
फ़िर हर पलों में साथ निभाते है
रिश्ते...........................................
कभी पास बुलाते है
कभी दूरियाँ बनाते है
फ़िर न होते हुए भी
होने का एहसास करते है

रिश्ते...............................

रचनाकार
" कीर्ति राज "

Tuesday, August 18, 2009

दहेज़ की बोली मे


लाखो घर बर्बाद हो गए
इस दहेज़ की बोली मे
अर्थी चढ़ गई लाखो कन्या
बैठ न पाई डोली मे
कितनो ने आपकी कन्या के
पीले हाथ करने मे
कहाँ कहाँ तक मस्तक टेके
अपनी शर्म बनाने मे
जिस पर बीते वही जाने
शब्द नहीं है कहने का
कितनो ने बेचे मकान
अब् तक अपने रहने का
गहने खेत दुकान रख दिए
सिर्फ मांग की रोली मे
लाखो कन्या बर्बाद हो गए
इस दहेज़ की बोली मे



अब् तक रुके न ये इंसान
मानवता की भाषा मे
लड़के वाले दरे बढाते
धन की अभिलाषा मे
यही हमारी मनुज रूप है
यही अहिंसा प्यारी है
लड़की वाले की गर्दन पर
चाकू या कटारी है
आज लगे ऐसे दहेज़ की
मानवता की डोली मे
लाखो कन्या बरबद हो गए
इस दहेज़ की बोली मे



अभी न माने लड़के वाले
कन्या की शाद्दी मे
नहीं बताओ हाथ इस तरह
तुम इस बर्बादी मे
तुमको भी ऐसा दुःख होगा
जब ऐसा दिन आएगा
अथवा ये बेबस का पैसा
तुम्हे रास नही आएगा
आरती चढ़ गए लाखो कन्या
इस दहेज़ की बोली मे

Monday, August 17, 2009

ZINDAGI


kya hai ye zindagi
kya talash hai koe
ya samajh rahe hai sabhi
kyu hari si hai wo kahdi
wo hamari zindagi
bhir ma hai kahdi !!!!!!!!


kya hai ye zindagi
bhir hoti hai badi
koe sunta na ghari ghari
wo akeli si khadi
wo hamari zindagi
bhir ma hai kahdi!!!!!!!!


kya hai ye zindagi
rang hotay hai sabhi
aur khilti hai ye zindagi
kyu kori kori wo khadi
wo hamari zindagi
bhir ma hai khadi!!!!!!!!


kya hai ye zindagi
khush haal hai ya khokli
roti hai kabhi kabhi
kyu akeli hai khadi
wo hamari zindagi
bhir ma hai khadi!!!!!!!!!!


kya hai ye zindagi
bharam sa hai bhari
ya bharam thodti hai sabhi
kyu ulagh rahi hai khadi
wo hamari zindagi
bhir ma hai khadi!!!!!!!!!!


kya hai ye zindagi
utsav deti hai kabhi
ya chinti hai khushi
kyu kho rahi hai khadi
wo hamari zindagi
bhir ma hai khadi!!!!!!!!!!


kya hai ye zingadi
zakham deti hai kabhi
ya sukun ki hai bandagi
kyu dard ma hai khadi
wo hamari zindagi
bhir ma hai khadi!!!!!!!!!!


kya hai ye zindagi
kalpana hai koe
ya wastawikta ki chawi
kyu sapno ma kahdi
wo hamari zindagi
bhir ma hai kahdi
wo hamari zindagi!!!!!!!!