Tuesday, August 18, 2009

दहेज़ की बोली मे


लाखो घर बर्बाद हो गए
इस दहेज़ की बोली मे
अर्थी चढ़ गई लाखो कन्या
बैठ न पाई डोली मे
कितनो ने आपकी कन्या के
पीले हाथ करने मे
कहाँ कहाँ तक मस्तक टेके
अपनी शर्म बनाने मे
जिस पर बीते वही जाने
शब्द नहीं है कहने का
कितनो ने बेचे मकान
अब् तक अपने रहने का
गहने खेत दुकान रख दिए
सिर्फ मांग की रोली मे
लाखो कन्या बर्बाद हो गए
इस दहेज़ की बोली मे



अब् तक रुके न ये इंसान
मानवता की भाषा मे
लड़के वाले दरे बढाते
धन की अभिलाषा मे
यही हमारी मनुज रूप है
यही अहिंसा प्यारी है
लड़की वाले की गर्दन पर
चाकू या कटारी है
आज लगे ऐसे दहेज़ की
मानवता की डोली मे
लाखो कन्या बरबद हो गए
इस दहेज़ की बोली मे



अभी न माने लड़के वाले
कन्या की शाद्दी मे
नहीं बताओ हाथ इस तरह
तुम इस बर्बादी मे
तुमको भी ऐसा दुःख होगा
जब ऐसा दिन आएगा
अथवा ये बेबस का पैसा
तुम्हे रास नही आएगा
आरती चढ़ गए लाखो कन्या
इस दहेज़ की बोली मे

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