Monday, September 28, 2009

तन्हाई

आँखों की कशिश शर्मा रही है
तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है
गुमशुदा है दिल की तमन्ना
या तमन्ना अपनी छुपा रही है
सहमी सी देख रही है तुमको
या तुम्हारी नजरो से खुद को छुपा रही है
शर्मा रही है या घबरा रही है
तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है
तुम्हारी शीतल छुअन
एहसासों को जगा रही है
आंखे बंद करके प्यारे लम्हे को सजा रही है
आगोश मे आने को हर लम्हा
तिल-तिल कर बिता रही है
तुम्हारे स्पर्श की बाबरी
अपना प्यार बढा रही है
तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है
बेसुध सी हुए पड़ी है
आंखे तो सोना चाहे
पर नींदे कहाँ आती है
यादो के यादो मे
अपने दिल और रात बिता रही है
तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है
आँखों से आँखों के मिलन मे
आँखों की कशिश शर्मा रही है
उनके यादो मे डूबी बाबरी
खुद को कितना सजा रही है
तन्हाई मे न जाने क्या क्या गुनगुना रही है

Saturday, September 19, 2009

मेरे दिल की यही कवायद है

मेरे दिल की यही कवायद है
जो मेरा नहीं है क्यों उसकी चाहत है
भ्रम की दुनिया मे जीती हू
या भ्रम बुन रखा है अपने इर्द-गिर्द
जानती नहीं मै ये फिर भी क्यों उसकी हसरत है
कराह रहा है दिल मेरा या दिल की यही आदत है
भाग रही हू मै तुमसे या नियति की यही चाहत है
खामोश हू मै लेकिन गुफ्तगू है दिल मे कई
बोलू कैसे उसको मै टुकरो मे मिलती है मुझे ज़िन्दगी
रोज़ होती है खुद से कुछ खास बाते
ढूंडटी रहती हू हर रोज़ उनकी फ़रियादे
फरिस्तो की दुनिया मे रहते है वो
और हम तो ज़मीं के भी न लायक है
खौफ होती है मुझे अपनी ज़िन्दगी से
फिर कैसे उन्हें इस खौफ का हिस्सा बनाये
वो नहीं है हमारे फिर क्यों उनकी चाहत है
खुशियो की आदत नहीं है हमें
फिर क्यों आप हमें खुशियों मे नहलाते है
कुर्बत की चाहत नहीं है हमें
फिर क्यों हर रोज़ एक सपना दिखाते है
किश्तों-किश्ती मे मर रहे है हम
ज़िन्दगी भी नहीं है मेरे संग
फिर क्यों जीने की हसरत जगाते हो
तुम नहीं हो मेरे फिर क्यों तुम्हारी चाहत है
क्यों ज़माने मे ऐसा होता है
जो दिल के पास हो दिल से दूर वही होता है
खुशनसीब है वो जो तन्हाई के संग जीते है
हमारी बेबसी तो देखो हम तो भीर मे भी तनहा होते है
तसल्ली तो उनको भी होती है जो देते है
तसल्ली तो उनको भी होती है जो खोते है
और हम बेबस तो पाकर भी खोते है
रेतो का घरोंदा है मेरा
क्यों इसमें बसेरा ढूंडते हो
हम तो पानी मे बह जाएंगे
फिर से साए सा खो जाएंगे
क्यों दिल पर दस्तक दाते हो
तुम नहीं हो मेरे फिर क्यों तुम्हारी चाहत है
मेरे दिल की यही कवायद है

Sunday, September 6, 2009

उनकी आवाज़


सागर की लहरे गोते लगा रही थी
संग मे चिडिया भी गुनगुना रही थी
आकाश भी बादलों को जगा रही थी
बादल भी झूम-झूम कर मदबर्षा करा रही थी
फिर भी उनकी आवाज़ तमन्नाओ को
जगा रही थी|
पहारो से झरने नदियो मे डुबकिया लगा रही थी
संग मे कोयल भी गीत सुना रही थी
सर्द हवाए गर्दनों पर झोके लगा रही थी
एहसासों के सुध मे खोई हर मौसम गा रही थी
फिर भी उनकी आवाज़ तमन्नाओ को
जगा रही थी|
भीड़ की चहल-पहल सबका मन बहला रही थी
मैखाने की शायरी हर समां बना रही थी
खामोशी के हर पल नगमे सुना रही थी
प्रेम मे डूबी मीरा अपनी तृष्णा बुझा रही थी
फिर भी उनकी आवाज़ तमन्नाओ को
जगा रही थी|

Tuesday, September 1, 2009

चिराग


चिराग-ऐ-रोशिनी के लौ की कसम
गरज न होती तेरी तो बुझा देते तुझे हम
दोस्ती का वास्ता तू देता रहा हरदम
और हम नाअक्ल समझे तू खुदा का है हमदम
तेरे खुवाबो की हकीक़त बाया करते रहे हम
और जनाज़ा निकलता रहा हमारे खुवाबो का सनम
काली रातो मे थमा तेरी रोशिनी का दामन
और उस रोशिनी की खातिर जला दिया तुने मेरा दामन
हम तो जल कर भी तेरा घर करते रहे आबाद
बस तुने ही हमारी मुरादों को कर दिया बर्बाद
मेरे अंधेरो मे बस रह गया वो चिराग
जो दिलाता है हमें तेरी हम्दर्दगी की याद
या जताता है हमारे बेबसी की औकाद
चिराग-ए-रोशिनी के लौ की कसम
गरज नो होती तेरी तो बुझा देते तुझे हम