Sunday, September 6, 2009

उनकी आवाज़


सागर की लहरे गोते लगा रही थी
संग मे चिडिया भी गुनगुना रही थी
आकाश भी बादलों को जगा रही थी
बादल भी झूम-झूम कर मदबर्षा करा रही थी
फिर भी उनकी आवाज़ तमन्नाओ को
जगा रही थी|
पहारो से झरने नदियो मे डुबकिया लगा रही थी
संग मे कोयल भी गीत सुना रही थी
सर्द हवाए गर्दनों पर झोके लगा रही थी
एहसासों के सुध मे खोई हर मौसम गा रही थी
फिर भी उनकी आवाज़ तमन्नाओ को
जगा रही थी|
भीड़ की चहल-पहल सबका मन बहला रही थी
मैखाने की शायरी हर समां बना रही थी
खामोशी के हर पल नगमे सुना रही थी
प्रेम मे डूबी मीरा अपनी तृष्णा बुझा रही थी
फिर भी उनकी आवाज़ तमन्नाओ को
जगा रही थी|

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