Tuesday, August 25, 2009

रिश्ते.........................

रिश्ते याद आते है कभी भूल जाते है
हमको रुलाते है चुप भी करते है
और फ़िर से खो जाते है
रिश्ते ........................
दर्द छुपाते है घाव बनते है
फ़िर भी हसते है मलहम लगाते है
और फ़िर सा वीरान कर जाते है
रिश्ते................ .................
खूब सताते है दर्द दिलाते है
गलियों- कुचों में भी भटकते है
और फ़िर से तनहा कर जाते है
रिश्ते .............................
जब साथ हो तो समझ न आते है
दूरियों के बाद ही क़द्र करते है
ज़हन में रहकर ज़हन को तरपते
है
रिश्ते.....................
कभी प्यारे लम्हे बनके होठो को हंसाते है
तो कभी पलकों को भिन्गोते
फ़िर हर पलों में साथ निभाते है
रिश्ते...........................................
कभी पास बुलाते है
कभी दूरियाँ बनाते है
फ़िर न होते हुए भी
होने का एहसास करते है

रिश्ते...............................

रचनाकार
" कीर्ति राज "

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