मेरे जीवन का सारांश है ये दर्द
मेरे स्नेह का प्रमाण है ये वर्ष
कितनी खुबसूरत है ये आसुओ की माला
कितना नायाब है ये विरह का रोग
फिर क्यों कहते हो मेरे दर्द को शोक
आँखों पर पर्दा है सबके
या अनदेखा करते है लोग
ये दर्द ही तो एक ज़रिया है
जो रखता है तुम्हे हर ओर
लोग कहते है
ये मेरा पागल मन है
मेरी दीवानगी और मेरी आंखे नम है
लेकिन जब भी पूछती हु खुद से
तो अक्सर कहते हो तुम
ये तुम्हारा नहीं दुनिया वालो का भ्रम है
कितनी रम गई हूँ इस दर्द में
कितना ख़ूबसूरत एहसास है ये
लगता है जैसे पा लिया हो
तुम्हे फिर से
तुम्हे फिर से
कितने पागल है वो लोग
जो दर्द को खुशियो से तोलते है
इस दर्द में इतनी तृष्णा है
की जितनी मै डूबती जाती हूँ
उतने ही पास तुम्हे पाती हूँ........
Written by: Kirti Raj
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